अफ़सोस मुझे करा तुम क्यों खामोश हो ..

मुझे अफ़सोस कराकर तुम क्यों चोर हो गये हो..., 
नादान समझ मुझे कुछ नया कराते कुछ पुराना भुलाते ...
पर शातिर तुम बन समझ सब तुम क्यों खामोश हो गये हो ...
मुझे अफ़सोस कराकर तुम क्यों चोर हो गये हो...,

हाँ मुझे थी, अब है, तुजसे  थी, रूहानियत सी  ...
जब रहना संग मुझे तेरे था फिर करी मैंने मोहबत ही ... 
समझ जब दिन मे होती रात नहीं, सुकून जहाँ वहाँ आहा नहीं ... 
फिर कैसे कर लेता मे शिकायत तुजसे
जब फकत हो ही गयी मोहबत थी ..
मुझे अफ़सोस कराकर तुम क्यों चोर हो गये हो...,

नादान था मे बह जाता था, 
कुछ होता नया यकीन न कर पाता था
(जिस कदर तुमसे मिलकर हुआ था पहली दफा)...
बेवफाई किस एहसास से वाकिफ है तब मुझे अकेले ये कौन समझाता की 
उसके लिए मेरी मोहबत का रुक्सत हो जाना लाज़मी है ... 
मुझे अफ़सोस कराकर तुम क्यों चोर हो गये हो...,


दिखा मुझे भी सब पर समझा तुझे पाक, बेशक यकीन था तुझपर ... 
मुझे अफ़सोस कराकर तुम क्यों चोर हो गये हो...,
आगाज़ किआ था संग जिस सफर का,
क्यों उस सफर के एकलौते मुसाफिर हो चले हो ..
समज कुछ राज़ अब तुम कहीं खोगये हो .. 

मुझे अफ़सोस कराकर तुम क्यों चोर हो गये हो...,
नादान समझ मुझे कुछ नया कराते कुछ पुराना भुलाते ...
पर शातिर तुम बन समझ सब तुम क्यों खामोश होगये हो ...
मुझे अफ़सोस कराकर तुम क्यों चोर हो गये हो...,

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