मनमर्ज़ी
करलो-करलो-करलो तुम अपने दिल की करलो
भूल जाओ सब वादे बगावत भी करलो
सिद्दत न हो तुमसे तुम निस्फ़ ही करलो
हो जाए जो गलती तब हामी तो भरलो
करलो-करलो-करलो तुम अपने दिल की करलो
जी साहिब,
आदत से है मजबूर तो झुकते मोहबत से
लड़ते अमीन पर जीते जदोहत से
दीखता न दूर तक आंखे न मूंदो तुम
सुनता है कम तो कानो को न छलना तुम
मनाज़िर-ा-हुकूमत समझ मे कम आते है
छोटा है तबका सब ये ही समझाते है
ये निसाँ-ा-ऊँगली का तुमपर लगाना है
समझ ये आ गया क्या अब नारा लगाना है...
करलो-करलो-करलो तुम अपने दिल की करलो
बंद करना लफ्ज़ो से निकली आवाज़ों को
अकीदतमन्द न चोट दो तुम हिदायत को
किआ लड़ना-करना है तुमको ही मरना है
देशभक्ति ह अपनी बाकी सबका कुछ न है
ये टोपी है सर पर ज़मीं पर है कुर्सी
लाठी हाथो मे अपने हम ही वकालत है
हुकूमत मे उठी जो धीरे आवाज़ है
सुनते हो क्यों ये वो शोर नाजायज़ है
हम राजा-ताना-शाह जो भी है हम ही है
सोचते हो क्या फरमान है जारी करो ...
ा ज़मीर
ये चीखो की ज्वाला जो भड़की है अंदर
खुदा बस्ता ज्वाला मे जो मज़हब से बढ़कर
क्यों मंदिर-मस्जिद की बढ़ती सी आफत है
कठघरे मे मोमिन अब कोई काफिर है
पूछे अब किस से क्या जायज़-नाजायज़ है
कहते है जमूरियत न दिखती खिलाफत है
कुछ कागज़ कहानी है इंसान है मिटटी है
कुर्बत है राजा की वकालत मे अर्ज़ी है
जी साहिब
करलो करलो करलो ......॥
भूल जाओ सब वादे बगावत भी करलो
सिद्दत न हो तुमसे तुम निस्फ़ ही करलो
हो जाए जो गलती तब हामी तो भरलो
करलो-करलो-करलो तुम अपने दिल की करलो
जी साहिब,
आदत से है मजबूर तो झुकते मोहबत से
लड़ते अमीन पर जीते जदोहत से
दीखता न दूर तक आंखे न मूंदो तुम
सुनता है कम तो कानो को न छलना तुम
मनाज़िर-ा-हुकूमत समझ मे कम आते है
छोटा है तबका सब ये ही समझाते है
ये निसाँ-ा-ऊँगली का तुमपर लगाना है
समझ ये आ गया क्या अब नारा लगाना है...
करलो-करलो-करलो तुम अपने दिल की करलो
बंद करना लफ्ज़ो से निकली आवाज़ों को
अकीदतमन्द न चोट दो तुम हिदायत को
किआ लड़ना-करना है तुमको ही मरना है
देशभक्ति ह अपनी बाकी सबका कुछ न है
ये टोपी है सर पर ज़मीं पर है कुर्सी
लाठी हाथो मे अपने हम ही वकालत है
हुकूमत मे उठी जो धीरे आवाज़ है
सुनते हो क्यों ये वो शोर नाजायज़ है
हम राजा-ताना-शाह जो भी है हम ही है
सोचते हो क्या फरमान है जारी करो ...
ा ज़मीर
ये चीखो की ज्वाला जो भड़की है अंदर
खुदा बस्ता ज्वाला मे जो मज़हब से बढ़कर
क्यों मंदिर-मस्जिद की बढ़ती सी आफत है
कठघरे मे मोमिन अब कोई काफिर है
पूछे अब किस से क्या जायज़-नाजायज़ है
कहते है जमूरियत न दिखती खिलाफत है
कुछ कागज़ कहानी है इंसान है मिटटी है
कुर्बत है राजा की वकालत मे अर्ज़ी है
जी साहिब
करलो करलो करलो ......॥
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