ये नाराज़गी

ऐसी भी क्या नाराज़गी की अब ताउम्र हमे माफ़ ना करोगे,
बड़ी लम्बी है तुम्हारी ये खूबसूरत ज़िंदगी 
फिर एक बार हमपर एहसान ना करोगे....

धधकते शोले सा इश्क़ हमारा दफ़न करचुके तुम ..II 
यक़ीनन  उसे अब सबके सामने बेनकाब न करोगे..
ऐसी भी क्या नाराज़गी की ताउम्र हमे माफ़ न करोगे..

एक किस्से का हिस्सा हमे बनाना मंज़ूर कर चुके..II
साथ फिर एक दफा चलने का हमपर फिर तुम ऐतबार न करोगे..
कहो ना.. ऐसी भी क्या नाराज़गी की ताउम्र हमे माफ़ न करोगे ...

हाँ होगयी गुस्ताखी कुछ समझने मे हमसे तुम्हे ..II
तो क्या हमारे इश्क़ का सफर बदनाम तुम करोगे..
कह दो ये जुर्म है ताउम्र का अब ताउम्र हमसे बात न करोगे ...

अब जुदा लगते है हम सबसे क्या रूह से रूहानियत का संग 
हमारे तुम एक बार इलज़ाम का करोगे ..II
ऐसी भी क्या नाराज़गी की ताउम्र हमे माफ़ न करोगे ...

हम सांस न सही पर तुम्हारी याद का मंज़र है ..II
हम जान दे देंगे मेरी जान हमारे बाद क्या करोगे ..
तुम खुदा हो हमारे क्या दरख्वास्त हमारी तुम मंज़ूर न करोगे ... 
कहो न कुछ..ऐसी भी क्या नाराज़गी की ताउम्र हमे माफ़ न करोगे ...

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